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1 जून नुमाशाम का 7:10 PM से 7:30 PM और कल सुबह ➺ अमृतवेला का 4:40 AM से 5:00 AM तक का संगठित योग अभ्यास

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♞ ज्ञान की विरोधी आत्माओं को सहयोगी बनाने के लिए योगभ्यास ♞
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↠↠ जब कोई मनुष्य दुखी और अशान्त होता है तो वह प्रभु ही से पुकार कर सकता है- “हे दुःख हर्ता, सुख-कर्ता, शान्ति-दाता प्रभु, मुझे शान्ति दो |”

↠↠ विकारों के वशीभूत हो पवित्रता के लिए भी परमात्मा की ही आरती करते हुए कहता है- “विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा !” अथवा “हे प्रभु जी, हम सब को शुद्धताई दीजिए, दूर करके हर बुराई को भलाई दीजिए |”

↠↠ परन्तु परमपिता परमात्मा विकारों तथा बुराइयों को दूर करने के लिए जो ईश्वरीय ज्ञान देते है तथा जो सहज राजयोग सिखाते है, प्राय: मनुष्य उससे परिचित होते हुए भी उसका विरोध करते हैं और वह इनको व्यवहारिक रूप में धारण भी नहीं करते |

↠↠ बाबा ने हमें इतना प्यारा संगठन दिया है । तो आइये आज एक जुट होकर उन आत्माओं को सहयोगी बनाने के लिए योगबल द्वारा साकाश दें जो यज्ञ का विरोध करती हैं

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♚☞ रूहानी ड्रिल / योगाभ्यास ☜♚

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  ✧ ॐ शांति ✧

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❖  मैं साकारी संगमयुगी सृष्टि पर परमात्मा की श्रेष्ठ रचना हूँ… प्रजापिता ब्रह्ममुखवंशावली सर्वोत्तम ब्राह्मण आत्मा हूँ… मैं ब्राह्मण आत्मा पवित्र आत्मा हूँ… महान आत्मा हूँ…पवित्रता और शांति मुझ आत्मा का स्वधर्म है… सृष्टि चक्र में मेरा स्थान ऊँची चोटी पर है… मैं सर्वोत्तम ब्राह्मण आत्मा कलयुगी देह, देह के सम्बन्ध, देह के पदार्थ, देह की दुनिया से दूर अनासक्त हो भृकुटि आसान पर विराजमान हो रहीं हूँ…

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❖  मैं श्रेष्ठ आत्मा धीरे धीरे देह के बंधन से न्यारी होती जा रहीं हूँ… और फरिश्ता बनकर इस व्यक्त दुनिया में व्यक्त रिश्तों से मुक्त होकर, अपने मन और बुद्धि को समेटकर, दृढ़ता की पेटी बाँध पूरी दृढ़ता से अपने अव्यक्त वतन की ओर उड़ती जा रहीं हूँ… वतन में बापदादा मेरा आह्वान कर रहें हैं… मैं स्वयं को बापदादा के सम्मुख देख रहीं हूँ…

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❖ ब्रह्मा बाबा… उनकी भृकुटि में चमकते मेरे प्यारे शिव बाबा… बाबा ने मेरे मन में उठते हर संकल्प को पढ़ लिया है… बाबा ने मुझ फ़रिश्ते के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ लिया है और आज्ञा दी है उन आत्माओं का आह्वान करने की जिनके संकल्प मेरे मन में उठ रहें हैं…

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❖ अब इमर्ज करें उन आत्माओं को जो परमात्मा द्वारा दिए इस अमूल्य ज्ञान का विरोध करती हैं… वह सभी आत्माएं आ गई हैं वतन में और देख रहीं हैं अपने अलौकिक पिता को… अपने शिव परमात्मा को… बाबा से निकलता दिव्य तेज उन आत्माओं को आकर्षित कर रहा है अपनी ओर… वह आत्माएं इस तेज को देख हर्षित हो रहीं हैं…

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❖  बाबा से दिव्य प्रकाश की किरणे  चारों ओर फ़ैल रही हैं… चारों ओर का वायुमंडल प्रेम और शांति से भर गया है… वह विरोधी आत्माएं अपने अविनाशी स्वरुप को पहचान अपने अविनाशी पिता को भी पहचान रहीं हैं… और उस प्रकाश की काया में वह आत्माएं भी अपने आपको प्रकाशित होने से रोक नहीं पा रहीं हैं…

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❖  उनके संस्कारों के बोझ के नीचे दबी हुई पवित्र, शांत और प्रेमस्वरूप आत्मा ने अपने पिता के असीम स्नेह को आज महसूस किया है… वह आत्माएं बाबा से निकलते तेज में अपने आपको डूबता हुआ महसूस कर रहीं हैं… डूब गयीं हैं वो दिव्यता में… उनके मन में उठते हर संकल्प पर परमात्मा की बिंदी लग गयी है…

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❖  संकल्पों का तूफ़ान शांत हो गया है… एक दम शांत… डीप साइलेन्स का अनुभव कर रहीं हैं वह आत्माएं… ऐसी शांति जो हर आत्मा की चाहना है इस संगमयुग पर… वह दिव्य अनुभव आज उन सभी आत्माओं को बाबा के तेजोमय प्रकाश द्वारा हो रहा है…

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❖  याद आ रहें हैं उन आत्माओं को अब वो दिन जब वह अपने पिता के पास रहतीं थीं शान्तिधाम में… 84 चक्र लगाते लगाते भूल चुकी थीं अपने ही पिता को वह आत्माएं… आअह्ह्ह ! कितना भाग्यशाली दिन है आज उन आत्माओं के लिए जो अपने बिछड़े हुए पिता से आज मिलन मना रहीं हैं… बाप और बच्चे का यह दिव्य अलौकिक मिलन कितना मनोहर है…

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❖  कितनी भाग्यशाली बेला है यह… हर तरफ प्रेम के सागर का प्रेम आत्माओं को तृप्त करता जा रहा है… प्रभु प्रेम ही इन आत्माओं को यज्ञ में सहयोगी बना रहा है… वह अपने अविनाशी पिता को पहचान  गयीं हैं अब… और परमात्मा के कार्य में सहयोग देने के लिए तत्पर हो उठीं हैं…

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❖  वह आत्माएं भी अब ईश्वरीय विश्वविद्यालय के स्टूडेंट बनकर कोर्स करने लगें हैं… परमात्मा के द्वारा दिए गए दिव्य ज्ञान को प्रेम से सुनकर उसे अपने जीवन में धारण कर रहें हैं… एक होनहार बच्चे के समान वह आत्माएं लास्ट सो फ़ास्ट, फ़ास्ट सो फर्स्ट बनने के लिए तीव्र पुरषार्थ करने लगीं हैं… यज्ञ के हर कार्य में पुरे सच्चे मन से सहयोगी बन गयीं हैं…

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❖  वह विरोधी से अब सहयोगी ब्राह्मण आत्माएं बन गयीं हैं और हर ब्राह्मण को आगे बढ़ाने में सहयोग देने लगीं हैं… परमात्म मिलन की प्यास उन्हें इतना अपनी ओर खींच रही है कि वह आत्माएं सदैव योग में रहने लगीं हैं… योग अग्नि द्वारा उनके कड़े संस्कार भस्म हो चुके हैं… और एक चमकता हुआ दिव्य औरा उन आत्माओं का बन गया है…

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❖  अब वह आत्माएं अन्य विरोध करने वाली आत्माओं को भी बाबा की शक्तियों द्वारा सहयोगी बनाने में त्तपर रहने लगीं हैं…    अपनी सेवाओं से और सहयोग से उन आत्माओं के सभी विकर्म विनाश हो गए हैं और वह लाइट और माइट बन इस वरदानी संगमयुग में बाबा के दिए वरदानों से भरपूर हो गयीं हैं…

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❖  प्रभु प्रेम में वह आत्माएं लीन हो गयीं हैं… सारे ब्राह्मण परिवार की सहयोगी बन गयीं हैं… पदम्पदम भाग्यशाली आत्मा बन गयी है… मेरे प्यारे बाबा ! आपके प्रेम की महिमा हम जितनी गायें उतनी कम होगी… कितना श्रेष्ठ भाग्य आपने हम बच्चों को दिया है… आपका हम सभी ब्राह्मण आत्माएं सच्चे दिलसे शुक्रिया अदा करते हैं बाबा…